न्यायिक जांच और धार्मिक तनाव: सीजेआई गवई के बयान से मची खलबली का विश्लेषण
नई दिल्ली, 21 सितंबर 2025: सुप्रीम कोर्ट की एक सुनवाई में सीजेआई बीआर गवई का एक बयान सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया। खजुराहो मंदिर के भगवान विष्णु की मूर्ति से जुड़े केस में उनका ‘अपने देवता से पूछ लो’ वाला कमेंट हिंदू संगठनों को चुभ गया। लोग कह रहे हैं कि ये धार्मिक भावनाओं का अपमान है। लेकिन सीजेआई ने साफ कर दिया कि वो सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। ये विवाद सिर्फ एक बयान की बात नहीं, बल्कि न्यायपालिका और धार्मिक संवेदनशीलताओं के बीच तालमेल की कहानी है। आइए, इसकी गहराई में उतरें।
बात 18 सितंबर की है। सुप्रीम कोर्ट में खजुराहो के एक प्राचीन मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर याचिका सुनवाई हो रही थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि मूर्ति को नुकसान पहुंचा है और इसे बचाने की जरूरत है। बहस के दौरान सीजेआई गवई ने कहा, “अगर मूर्ति इतनी ताकतवर है, तो पूछ लो कि ये पहले क्यों टूट गई?” ये शब्द सुनते ही कोर्ट रूम में हंसी की लहर दौड़ गई, लेकिन बाहर सोशल मीडिया पर तूफान आ गया। हिंदू संगठनों ने इसे ‘मजाक’ करार दिया। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे ग्रुप्स ने माफी की मांग की। ट्विटर पर #ApologizeCJI ट्रेंड करने लगा, जहां लोग लिख रहे थे कि ये हिंदू आस्था पर हमला है।
सीजेआई गवई, जो देश के दूसरे दलित चीफ जस्टिस हैं, पर ये आरोप भारी पड़े। महाराष्ट्र के नांदेड़ से आने वाले गवई साहब को हमेशा से सामाजिक न्याय का चेहरा माना जाता है। लेकिन इस बार उनका बयान उल्टा पड़ा। अगले ही दिन कोर्ट में उन्होंने सफाई दी, “मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं। सच्चा सेकुलरिज्म यही है। मैं मंदिर जाता हूं, मस्जिद जाता हूं, चर्च जाता हूं। नेपाल में भी ऐसा ही विवाद हुआ था, लेकिन हमें एक-दूसरे को समझना चाहिए।” ये बयान सुनकर कुछ लोग शांत हुए, लेकिन कई संगठनों ने कहा कि माफी बिना शर्त होनी चाहिए।
ये विवाद हमें सोचने पर मजबूर करता है कि न्यायिक सुनवाई में धार्मिक मुद्दे कैसे संभाले जाएं। जजों को फैसले लेते वक्त भावनाओं का ख्याल रखना पड़ता है, लेकिन कभी-कभी शब्दों का चयन गलत हो जाता है। भारत जैसे बहु-धार्मिक देश में ये संवेदनशील है। याद कीजिए, अयोध्या राम मंदिर केस में भी जजों ने कितनी सावधानी बरती थी। यहां सीजेआई का बयान शायद हल्का-फुल्का था, लेकिन सोशल मीडिया ने इसे तोड़-मरोड़ दिया। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये डिजिटल युग की देन है – एक लाइन वायरल हो जाती है, पूरा संदर्भ गायब।
अब सवाल ये है कि क्या न्यायपालिका को धार्मिक मामलों में और ट्रेनिंग की जरूरत है? या सोशल मीडिया को जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना सिखाना चाहिए? विपक्षी नेता भी कूद पड़े हैं। कांग्रेस ने कहा कि ये बीजेपी की साजिश है, तो सत्ताधारी पक्ष ने इसे ‘ओवररिएक्शन’ बताया। लेकिन असल में, ये हमें याद दिलाता है कि सेकुलरिज्म सिर्फ कागजों पर नहीं, दिलों में बसना चाहिए।
CJI गवई मेरी बात को तोड़ मरोड़ के रखा गया है
— Dodooni8 (@Anudodooni8) September 20, 2025
किसी और के मज़हब के बारे मैं बोल के दिखाओ
इन जजों को सजा कौन देगा ? pic.twitter.com/5VgROKjOZl
सीजेआई गवई का सफाई वाला बयान एक सबक है। हमें सभी धर्मों को बराबर देखना होगा, ताकि तनाव न फैले। आप क्या सोचते हैं? क्या जजों के बयानों पर सोशल मीडिया का रिएक्शन ज्यादा तेज होता जा रहा है? या धार्मिक संगठनों को शांत रहना चाहिए? अपनी राय कमेंट्स में शेयर करें।
