इतिहास समाचार: सालार मसूद मुगल कौन था?
दिनांक: 22 मार्च 2025
भारतीय इतिहास में कई ऐसे नाम हैं जो समय के साथ विवाद और चर्चा का विषय बने रहे हैं। इन्हीं में से एक नाम है हजरत सैयद सालार मसूद गाजी, जिन्हें “गाजी मियां” के नाम से भी जाना जाता है। सालार मसूद 11वीं शताब्दी के एक चर्चित और अर्ध-पौराणिक व्यक्तित्व थे, जिनका संबंध गजनवी साम्राज्य से बताया जाता है। आइए जानते हैं कि वे कौन थे और उनका इतिहास क्या कहता है।
सालार मसूद का जन्म संभवतः 10 फरवरी 1014 को अजमेर में हुआ था। उन्हें सुल्तान महमूद गजनवी का भतीजा कहा जाता है, जो उस समय के एक शक्तिशाली शासक थे और जिन्होंने भारत पर कई आक्रमण किए। इतिहासकारों के अनुसार, सालार मसूद महमूद गजनवी की सेना में एक सेनापति थे और उन्होंने 16 साल की उम्र से भारत में सैन्य अभियानों में हिस्सा लिया। उनके अभियानों में मुल्तान, दिल्ली, मेरठ और बहराइच जैसे क्षेत्र शामिल थे। हालांकि, गजनवी इतिहास में उनका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, जिसके कारण उनकी ऐतिहासिकता पर सवाल उठते हैं।
उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण विवरण 17वीं शताब्दी में लिखी गई एक फारसी हagiography (संत-चरित्र), “मिरात-ए-मसूदी” से मिलता है, जिसे शेख अब्दुर रहमान चिश्ती ने लिखा था। इस पुस्तक के अनुसार, सालार मसूद 1030-31 के आसपास अवध क्षेत्र में पहुंचे और बहराइच-श्रावस्ती के इलाकों में अपनी सैन्य गतिविधियां शुरू कीं। माना जाता है कि उनकी क्रूरता और सैन्य शक्ति ने स्थानीय हिंदू राजाओं को चुनौती दी। लेकिन उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
1034 में, बहराइच में एक युद्ध के दौरान उनकी मृत्यु हुई। यह युद्ध स्थानीय राजा सुहेलदेव के खिलाफ लड़ा गया था, जिन्होंने सालार मसूद को पराजित किया। उनकी मृत्यु 15 जून 1034 को हुई और उन्हें बहराइच में दफनाया गया, जहां आज उनकी कब्र एक दरगाह के रूप में प्रसिद्ध है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनकी मृत्यु के लगभग 200 साल बाद, 13वीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने उनकी कब्र पर एक मकबरा बनवाया, जिसे बाद में फिरोज शाह तुगलक ने और विस्तार दिया।
सालार मसूद की पहचान समय के साथ बदलती रही। जहां कुछ लोग उन्हें एक सूफी संत के रूप में देखते हैं, वहीं अन्य उन्हें एक आक्रामक योद्धा मानते हैं, जिन्होंने स्थानीय आबादी पर अत्याचार किए। उनकी दरगाह पर आज भी हर साल मेला लगता है, जिसे “नेजा मेला” कहा जाता है, और यह हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच एक सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक बन गया है। हालांकि, हाल के वर्षों में इस मेले को लेकर विवाद भी बढ़ा है, क्योंकि कुछ संगठन इसे ऐतिहासिक घटनाओं के गलत चित्रण से जोड़ते हैं।
इतिहासकारों के बीच इस बात पर मतभेद है कि सालार मसूद की कहानी कितनी सत्य और कितनी काल्पनिक है। “मिरात-ए-मसूदी” को कई विद्वान एक काल्पनिक रचना मानते हैं, क्योंकि यह घटनाओं के 600 साल बाद लिखी गई थी। फिर भी, सालार मसूद का नाम भारतीय इतिहास में एक रहस्यमयी और प्रभावशाली व्यक्तित्व के रूप में दर्ज है, जो आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
संपादकीय टिप्पणी: सालार मसूद की कहानी हमें इतिहास के उन पहलुओं की याद दिलाती है, जहां तथ्य और मिथक एक साथ जुड़ जाते हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि इतिहास को कैसे देखा और समझा जाए।