भारत का इतिहास गौरवशाली और जटिल घटनाओं से भरा हुआ है। मुगल शासन के दौरान, जब उनकी ताकत अपने चरम पर थी, कई हिंदू राजाओं ने उनके खिलाफ विद्रोह किया और अपने राज्य को पुनः स्थापित करने की कोशिश की। ऐसी ही एक कहानी है मराठा साम्राज्य के एक वीर योद्धा और कुशल शासक की, जिसने न केवल मुगलों से आगरा की गद्दी छीन ली, बल्कि ताजमहल जैसे प्रतीकात्मक स्मारक से भी अपनी छाप छोड़ी। यह कहानी है मराठा सरदार साहूजी भोसले या उनके समय के मराठा प्रभाव की, जिन्होंने मुगल साम्राज्य के गढ़ में सेंध लगाई।
मुगलों का आगरा और ताजमहल का महत्व
17वीं और 18वीं सदी में आगरा मुगल साम्राज्य का एक प्रमुख केंद्र था। शाहजहां ने इस शहर को अपनी राजधानी बनाया था और ताजमहल का निर्माण करवाया था, जो उनकी पत्नी मुमताज महल की याद में बनाया गया एक भव्य मकबरा था। ताजमहल न केवल वास्तुकला का चमत्कार था, बल्कि मुगल शक्ति और वैभव का प्रतीक भी था। कहा जाता है कि इसके मुख्य द्वार पर एक विशाल चांदी का दरवाजा लगा था, जो उस समय की समृद्धि और शाही ठाठ-बाट को दर्शाता था।
लेकिन 18वीं सदी आते-आते मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। औरंगजेब की मृत्यु के बाद, उसके उत्तराधिकारी आंतरिक कलह और बाहरी हमलों से जूझ रहे थे। इसी अवसर का लाभ उठाकर मराठा साम्रI मराठा योद्धाओं ने मुगल क्षेत्रों में अपनी ताकत बढ़ाई और आगरा जैसे महत्वपूर्ण शहरों पर कब्जा किया।
मराठों का आगरा पर कब्जा
मराठा साम्राज्य, जिसकी नींव छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी थी, 18वीं सदी में एक शक्तिशाली ताकत बन चुका था। पेशवा बाजीराव और उनके उत्तराधिकारियों ने मुगल साम्राज्य के कई हिस्सों पर अधिकार कर लिया। 1750 के दशक में मराठा सेनाओं ने आगरा पर हमला किया और इस शहर को अपने नियंत्रण में ले लिया। यह मराठों के लिए एक बड़ी जीत थी, क्योंकि आगरा न केवल रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह मुगल सत्ता का प्रतीक भी था।
मराठा शासक साहूजी भोसले या उनके किसी विश्वसनीय सरदार ने इस दौरान आगरा पर शासन किया। उनकी सेना ने मुगल शासकों को हराकर यह साबित कर दिया कि हिंदू शक्ति फिर से उभर रही थी। इस जीत ने मराठा साम्राज्य को और मजबूत किया और मुगलों के पतन को तेज कर दिया।
ताजमहल से चांदी का दरवाजा हटाने की कहानी
मराठों के आगरा पर कब्जे के बाद एक ऐतिहासिक घटना की चर्चा होती है—ताजमहल से चांदी के दरवाजे को हटाने की। इतिहासकारों के अनुसार, जब मराठा सेनाओं ने आगरा पर अधिकार किया, तो उन्होंने ताजमहल के मुख्य प्रवेश द्वार पर लगे चांदी के दरवाजे को लूट लिया। कुछ किवदंतियों में कहा जाता है कि इस चांदी को पिघलाकर सैन्य खर्च के लिए इस्तेमाल किया गया, जबकि कुछ का मानना है कि इसे मराठा क्षेत्र में ले जाया गया। यह घटना मुगल वैभव के अंत और मराठा प्रभुत्व के उदय का प्रतीक बन गई।
हालांकि, कुछ इतिहासकार इस बात पर बहस करते हैं कि क्या वास्तव में ऐसा हुआ था, क्योंकि उस समय के लिखित साक्ष्य सीमित हैं। फिर भी, यह कहानी भारतीय लोककथाओं में प्रसिद्ध है और मराठा शौर्य का एक उदाहरण मानी जाती है।
मराठा शासन और उसका प्रभाव
मराठों का आगरा पर कब्जा लंबे समय तक नहीं रहा, क्योंकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव बढ़ने लगा और मराठा साम्राज्य को भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन इस घटना ने यह दिखाया कि मुगल साम्राज्य अपनी चमक खो चुका था और हिंदू शासक फिर से अपनी ताकत का प्रदर्शन करने में सक्षम थे।
ताजमहल से चांदी का दरवाजा हटाना केवल एक भौतिक घटना नहीं थी, बल्कि यह उस समय के सत्ता परिवर्तन का प्रतीक था। मराठा योद्धाओं ने न केवल युद्ध के मैदान में जीत हासिल की, बल्कि भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय भी लिखा।
निष्कर्ष
इस हिंदू राजा और उनकी सेना की कहानी हमें उस दौर की अस्थिरता और वीरता की याद दिलाती है। मराठा साम्राज्य का उदय और मुगल शक्ति का पतन भारतीय इतिहास के सबसे रोमांचक मोड़ों में से एक है। ताजमहल से चांदी का दरवाजा हटाने की घटना, चाहे वह पूरी तरह सच हो या आंशिक रूप से किंवदंती, मराठा शौर्य और साहस की अमिट छाप छोड़ती है। यह कहानी आज भी हमें प्रेरित करती है कि दृढ़ संकल्प और एकता के बल पर कोई भी साम्राज्य चुनौती दे सकता है।