AMU में मंदिर की मांग: देवकीनंदन ठाकुर ने उठाया मुद्दा, बहस छिड़ी

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश – 8 अप्रैल, 2025
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर की उस मांग के कारण जिसमें उन्होंने परिसर में एक हिंदू मंदिर के निर्माण की वकालत की है। ठाकुर का कहना है कि AMU में कई मस्जिदें मौजूद हैं, लेकिन हिंदू छात्रों के लिए एक भी मंदिर नहीं है, जो उनके अनुसार “हिंदू आस्था का सम्मान” करने में असफलता को दर्शाता है। यह मांग सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है, जिससे धार्मिक समानता और विश्वविद्यालय की धर्मनिरपेक्ष छवि पर नई बहस छिड़ गई है।

देवकीनंदन ठाकुर, जो अपने कथाओं और सामाजिक मुद्दों पर बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं, ने हाल ही में एक बयान में कहा, “AMU में 6,000 से अधिक हिंदू छात्र पढ़ते हैं। वहां हर हॉस्टल में मस्जिद है, लेकिन एक मंदिर की जगह नहीं? यह कहां का न्याय है? हिंदू आस्था का सम्मान होना चाहिए।” उनकी यह टिप्पणी X पर व्यापक रूप से साझा की गई, जहां समर्थकों ने इसे “सनातन धर्म की जय” के नारे के साथ बढ़ावा दिया। ठाकुर की मांग को बीजेपी नेताओं और हिंदू संगठनों का समर्थन मिला है, जिनमें से कुछ ने इसे विश्वविद्यालय की नीतियों पर सवाल उठाने का मौका बनाया है।

AMU में वर्तमान में जामा मस्जिद सहित कई मस्जिदें हैं, जो परिसर के 467.6 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई हैं। ये मस्जिदें 19 हॉस्टलों में से अधिकांश में मौजूद हैं, जो विश्वविद्यालय के आवासीय चरित्र का हिस्सा हैं। हालांकि, हिंदू छात्रों के लिए कोई मंदिर नहीं है, जिसे ठाकुर और उनके समर्थक असमानता का प्रतीक मानते हैं। यह मुद्दा पहले भी उठ चुका है—2018 में AMU छात्र अजय सिंह (बीजेपी विधायक दलबीर सिंह के पोते) और 2019 में बीजेपी युवा मोर्चा ने भी मंदिर निर्माण की मांग की थी, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे खारिज कर दिया था।

विरोधियों का तर्क है कि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जिसे 1920 के AMU अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था, और इसकी धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को बनाए रखना जरूरी है। पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष फैजुल हसन ने 2018 में ANI को बताया था, “2015 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नए धार्मिक ढांचों—मंदिर, मस्जिद, चर्च—के निर्माण पर रोक लगा दी थी। मौजूदा ढांचों को भी ध्वस्त नहीं किया जा सकता।” इस फैसले के आधार पर, AMU प्रशासन ने मंदिर की मांग को अस्वीकार्य बताया है, यह कहते हुए कि यह कानूनी और नीतिगत रूप से संभव नहीं है।

फिर भी, ठाकुर की मांग ने ताजा विवाद को हवा दी है। X पर पोस्ट्स में समर्थक लिख रहे हैं, “अगर मस्जिद हो सकती है, तो मंदिर क्यों नहीं?” वहीं, आलोचक इसे “राजनीतिक स्टंट” करार दे रहे हैं। बीजेपी नेत्री रूबी आसिफ खान ने मार्च 2025 में इसी तरह PM नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मंदिर की वकालत की थी, जिसे उन्होंने “भाईचारे को बढ़ावा देने” का रास्ता बताया था। दूसरी ओर, कुछ छात्रों और प्रोफेसरों का कहना है कि यह मांग विश्वविद्यालय के “गंगा-जमुनी तहजीब” के ethos को कमजोर कर सकती है।

AMU के प्रवक्ता ने अभी तक ठाकुर की टिप्पणी पर औपचारिक जवाब नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर इस मांग को खारिज कर सकता है। इस बीच, यह मुद्दा उत्तर प्रदेश की सियासत में भी गूंज रहा है, जहां धार्मिक प्रतीकों और पहचान की राजनीति हमेशा संवेदनशील रही है। क्या AMU में मंदिर बनेगा, या यह मांग एक और अनसुलझा विवाद बनकर रह जाएगी? जवाब समय और कानून पर निर्भर करता है।

कर्मचारी लेखक, अलीगढ़ समाचार

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