2 अप्रैल, 2025 – वक्फ संशोधन विधेयक 2024 (Waqf Amendment Bill 2024) भारत में पिछले कुछ समय से चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यह विधेयक, जिसे केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त, 2024 को लोकसभा में पहली बार पेश किया था, अब संसद में व्यापक बहस और विचार-विमर्श के बाद 2 अप्रैल, 2025 को फिर से चर्चा और पारित करने के लिए प्रस्तुत किया गया है। यह विधेयक वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है, जो भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और नियमन को नियंत्रित करता है। लेकिन यह विधेयक क्या है, इसके पीछे का उद्देश्य क्या है, और यह इतना विवादास्पद क्यों बन गया है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
वक्फ क्या है?
वक्फ एक इस्लामी परंपरा है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को स्थायी रूप से धार्मिक, पवित्र या परोपकारी उद्देश्यों के लिए समर्पित कर देता है। यह संपत्ति मस्जिदों, कब्रिस्तानों, मदरसों, अनाथालयों या गरीबों की सहायता जैसे कार्यों के लिए उपयोग की जाती है। एक बार संपत्ति वक्फ के रूप में घोषित हो जाने के बाद, वह अहस्तांतरणीय हो जाती है—यानी उसे बेचा, हस्तांतरित या उत्तराधिकार में नहीं दिया जा सकता। भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड करते हैं, जो वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत काम करते हैं। देश भर में लगभग 8.7 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जो 9.4 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैली हैं, और इनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। यह वक्फ बोर्ड को भारतीय रेलवे और सशस्त्र बलों के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी बनाता है।
वक्फ संशोधन विधेयक 2024 क्या है?
वक्फ संशोधन विधेयक 1995 के मौजूदा वक्फ अधिनियम में करीब 40 संशोधन प्रस्तावित करता है। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों के कामकाज में पारदर्शिता लाना, संपत्तियों के प्रबंधन को बेहतर करना और प्रशासनिक कुशलता बढ़ाना बताया गया है। विधेयक का नाम बदलकर “यूनाइटेड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1995” (UWMEEDA 1995) करने का भी प्रस्ताव है। इसके अलावा, यह मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 को निरस्त करने की बात करता है। सरकार का कहना है कि यह संशोधन मुस्लिम समुदाय से उठी मांगों और जस्टिस (रिटायर्ड) राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर लाया गया है।
प्रमुख संशोधन क्या हैं?
- वक्फ की परिभाषा और शर्तें: विधेयक में कहा गया है कि वक्फ केवल वही व्यक्ति बना सकता है जो कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो और जिसके पास उस संपत्ति का स्वामित्व हो। “वक्फ बाय यूजर” (लंबे समय तक उपयोग के आधार पर वक्फ की मान्यता) को हटाने का प्रस्ताव है। साथ ही, वक्फ-अलाल-औलाद (परिवार के लिए वक्फ) में महिलाओं सहित सभी वारिसों के अधिकारों को सुनिश्चित करने की शर्त जोड़ी गई है।
- वक्फ बोर्ड की संरचना: वक्फ बोर्ड में अब गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य होगा। इसमें शिया, सुन्नी, बोहरा, अघाखानी और मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं को शामिल करने का प्रावधान है। बोर्ड के सदस्यों का चयन अब राज्य सरकार द्वारा नामांकन से होगा, न कि पहले की तरह निर्वाचन से।
- संपत्ति पर विवाद का समाधान: पहले वक्फ बोर्ड यह तय कर सकता था कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, लेकिन अब यह अधिकार हटा दिया गया है। विवाद की स्थिति में जिला कलेक्टर या राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी अंतिम निर्णय लेंगे।
- पंजीकरण और पारदर्शिता: सभी वक्फ संपत्तियों का केंद्रीय पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा। बोर्ड की कार्यवाही और ऑडिट रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएंगी। ऑडिट का अधिकार अब राज्य सरकार या नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के पास होगा।
- वक्फ ट्रिब्यूनल में बदलाव: ट्रिब्यूनल में अब तीन के बजाय दो सदस्य होंगे, और इसमें इस्लामी कानून के विशेषज्ञ की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट में 90 दिनों के भीतर चुनौती दी जा सकेगी।
विधेयक क्यों विवादास्पद है?
वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी दलों के बीच तीखी बहस छिड़ी हुई है। विपक्ष, जिसमें कांग्रेस, AIMIM, और तृणमूल कांग्रेस जैसे दल शामिल हैं, इसे “असंवैधानिक” और “मुस्लिम विरोधी” करार दे रहे हैं। उनके प्रमुख तर्क हैं:
- धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला: विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करता है। AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसे “वक्फ को खत्म करने की साजिश” बताया है।
- गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति: वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष पूछता है कि जब हिंदू या सिख धार्मिक संस्थानों में गैर-सदस्यों की नियुक्ति नहीं होती, तो वक्फ बोर्ड में ऐसा क्यों?
- केंद्र का हस्तक्षेप: राज्य वक्फ बोर्डों के अधिकारों को कम कर केंद्र और राज्य सरकार को अधिक शक्ति देना संघवाद के खिलाफ माना जा रहा है।
- संपत्ति पर खतरा: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) का दावा है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों को हड़पने की कोशिश है, खासकर पुरानी संपत्तियों को जो “वक्फ बाय यूजर” के तहत मान्य थीं।
दूसरी ओर, सरकार और बीजेपी का कहना है कि यह विधेयक वक्फ बोर्डों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि पुराने कानून ने वक्फ बोर्ड को अनियंत्रित अधिकार दे दिए थे, जिसके कारण संपत्तियों पर गलत दावे और अतिक्रमण की शिकायतें बढ़ी थीं। उनका तर्क है कि यह विधेयक किसी धार्मिक स्थल पर हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि प्रशासनिक सुधार लाता है।
आगे क्या?
वक्फ संशोधन विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने फरवरी 2025 में मंजूरी दी थी, जिसमें विपक्ष के 44 संशोधन प्रस्ताव खारिज कर दिए गए थे। अब लोकसभा में आठ घंटे की चर्चा के बाद इसे पारित करने की तैयारी है। एनडीए के पास लोकसभा में 293 और राज्यसभा में 125 सांसदों का समर्थन है, जो बहुमत से अधिक है। हालांकि, विपक्ष और मुस्लिम संगठनों ने इसके खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध की योजना बनाई है, जिसमें जंतर-मंतर पर प्रदर्शन भी शामिल है।
The chairman of Uttarakhand Waqf Board, Shadab Shams himself exposes the Corruption of Waqf Board…
— Mr Sinha (@MrSinha_) April 2, 2025
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निष्कर्ष
वक्फ संशोधन विधेयक 2024 एक ऐसा कदम है जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को आधुनिक और पारदर्शी बनाने का दावा करता है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों ने धार्मिक स्वायत्तता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर सवाल खड़े किए हैं। यह विधेयक न केवल कानूनी सुधार का मामला है, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। आने वाले दिनों में संसद में होने वाली बहस और इसका परिणाम यह तय करेगा कि यह कानून वक्फ व्यवस्था को सशक्त बनाता है या इसके मूल स्वरूप को बदल देता है।
